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Wednesday, March 2, 2011

दुस्साहस -"घंटी" बजा देने का

दुस्साहस -"घंटी" बजा देने का 

खुदाई जारी थी 
हम खुश थे -कुछ मिलेगा 
कोई सभ्यता फिर 
"सिन्धु -घाटी" सी  -
'पावन' - मंदिर के पास
(photo with thanks from other source for a good cause)

पुजारी की छत्र-छाया में
मिले - सोने के बिस्कुट -
चाँदी-हीरे -गहने-
भीड़-मीडिया -विडियो
आज मिली आजादी
सबको -देखने की
सुनने की !
फिर समझ आई -क्यों-
हम तथाकथित -"छोटे -लोगों" को
घुसने -ठहरने नहीं दिया जाता
'पीठ ठोंक' -एक पल में -
'चल' कह दिया जाता
मठ-मन्दिर -आश्रम के
प्रान्गड़   में - तहखाने में
वी -आई-पी-लोन्ज में
क्योंकि हम छोटे लोगों के
होती हैं " जादुई आँखें"
शिव सा 'त्रिनेत्र'
छोटी सी जीभ -  बोलने का साहस
दुस्साहस ...
घंटी बजा देने का !!!
शोर मचा
"जागते रहो" 
चिल्ला-चिल्ला
सबको -जगा देने का .

शुक्लाभ्रमर५
२.३.११ जल पी.बी.

1 comment:

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