पंखुड़ियाँ छू छू
उड़ जाते
भौंरे जब तुम
उड़ उड़ जाते
किसी कली या
खिले फूल पर
गुन-गुन कर के
जवां बनाते
उसके कानों -
कुछ कह जाते
पंखुड़ियाँ छू छू
उड़ जाते
वहीँ पास में
छोटी थी मै
बेसब्री से -
बनूँ बड़ी कब
सारा मंजर
देख रही थी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१८.४.11
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