प्रिय मित्रों सजने संवरने के दिन आ गये दिवाली गयी तो रोशन कर गयी मन को तन को -अब सब वक्त को निहार लें किस मुकाम पर कौन खड़ा है क्या कौन झाँक रहा दस्तक दे रहा , वक्त के हिसाब से आओ चलें अपनी अपनी कुछ जिम्मेदारियां भी समझें और निभाएं ….आज कुछ अलग सा …..
आँखों की वो छुअन देख के
दौड़ी दौड़ी घर आई
खड़ी आईने के संग जाकर
भर भर कर मै अंग लगायी
लहराई कुछ बल खायी
जुल्फों की बदली से छन छन
नैनों से कटि तक को देखा
देख देख कितना शरमाई
लाल हुआ चेहरा कुछ मेरा
नैन रसीले और कटीले
मद भरे जाम से मस्त पड़ी
खुद के तीर जो सह ना पाई
उनसे शिकवा क्या कर दूं मै
कैसे उनसे पूंछूं जाकर
नैन गडाए क्या देखे वे
जिसको क्षण भर झेल ना पायी
जान गयी पहचान गयी मै
“भ्रमर” है क्यों उड़ उड़ के आता
सुबह शाम घेरे यों रहता
गुन-गुन गुन -गुन मन क्या गुनता
कलि फूल पर hai क्यों मरता
मौसम बदल गया अब जाना
गदरायी डालें हैं माना
बगिया महक गयी फल आये
कोयल कूक कूक कर गाये
पापी पपीहा बोल पड़ा है
पीऊ पीऊ दिल में झनकाये
मोर नाच अब झूम रिझाये
दर्पण क्यों ना सच कह जाए
हुयी सयानी समझ में आये
तुम समझो सब कहा न जाए
जिय की बात हिया रह जाए !!
शुक्ल भ्रमर ५
२.१०.२०११ यच पी
दौड़ी दौड़ी घर आई
खड़ी आईने के संग जाकर
भर भर कर मै अंग लगायी
लहराई कुछ बल खायी
जुल्फों की बदली से छन छन
नैनों से कटि तक को देखा
देख देख कितना शरमाई
लाल हुआ चेहरा कुछ मेरा
नैन रसीले और कटीले
मद भरे जाम से मस्त पड़ी
खुद के तीर जो सह ना पाई
उनसे शिकवा क्या कर दूं मै
कैसे उनसे पूंछूं जाकर
नैन गडाए क्या देखे वे
जिसको क्षण भर झेल ना पायी
जान गयी पहचान गयी मै
“भ्रमर” है क्यों उड़ उड़ के आता
सुबह शाम घेरे यों रहता
गुन-गुन गुन -गुन मन क्या गुनता
कलि फूल पर hai क्यों मरता
मौसम बदल गया अब जाना
गदरायी डालें हैं माना
बगिया महक गयी फल आये
कोयल कूक कूक कर गाये
पापी पपीहा बोल पड़ा है
पीऊ पीऊ दिल में झनकाये
मोर नाच अब झूम रिझाये
दर्पण क्यों ना सच कह जाए
हुयी सयानी समझ में आये
तुम समझो सब कहा न जाए
जिय की बात हिया रह जाए !!
शुक्ल भ्रमर ५
२.१०.२०११ यच पी
जितने खूबसूरत शब्द हैं उनते ही उन्नत भावों से सजाया है. शब्द नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए
ReplyDelete......कविता अच्छी लगी ।
बहुत खूबसूरत भाव .. सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रिय संजय भाष्कर जी अभिवादन और आभार आप का अपने शब्दों से रचना को सजाया और मान दिया आप ने ...
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
आदरणीया संगीता जी अभिवादन और आभार आप का रचना के भाव और प्रस्तुति आप को ठीक लगी सुन ख़ुशी हुयी
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
akraktale के द्वारा November 4, 2011
ReplyDeleteआदरणीय भ्रमर जी नमस्कार,
मै नहीं जानता आपकी यात्रा आजकल किस पड़ाव पर है किन्तु मै सिर्फ इतना कहता हूँ कुछ दिन के लिए घर लौट आओ.
उनसे शिकवा क्या कर दूं मै
कैसे उनसे पूंछूं जाकर
नैन गडाए क्या देखे वे
जिसको क्षण भर झेल ना पायी
आपकी कविता का तो रंग ही बदला बदला लगता है.गाते थे भीम पलासी अब मेघ मल्हार सा लगता है. अति सुन्दर रचना.
surendra shukla bhramar5 के द्वारा November 5, 2011
प्रिय अशोक जी रचना का रंग चढ़ा लगता है आप पर भी और आमंत्रण घर जाने को भ्रमर …हाँ मेघ मल्हार लोक रस आनंद दाई होता ही है ..
पड़ाव आज कल फिर हिमाचल पंजाब उ.प्र से वापस हिमाचल ….बस यूं ही चलते रहना है ..चलते चलते ….
जय श्री राम
आभार आप का
भ्रमर ५
alkargupta1 के द्वारा November 3, 2011
शुक्ल जी , कुछ पृथक सी सुन्दर रंगों में रंगी अच्छी रचना !
surendra shukla bhramar5 के द्वारा November 4, 2011
हाँ अलका जी कुछ पृथक अलग रंग ढंग जिन्दगी तो यही है कभी उतार चढाव कभी श्वेत कभी रंग बिरंगा …यहाँ वहां घुमते देखते ….
रचना अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
Rajkamal Sharma के द्वारा November 3, 2011
अगर आपने अपनी अजगर की चाल वाली पोस्ट पर कमेंट्स के जवाब दे दिए है तो उसका लिंक दे दीजिए …..
वैसे आप रेंगते हुए कहाँ निकल गए थे ?
जय श्री राधे कृष्ण
surendra shukla bhramar5 के द्वारा November 4, 2011
आप का जबाब हम दे सकें इतनी जुर्रत हममे कहाँ हाँ हम तो उस चुटीले अंदाज और कमल रूपी कमाल और धमाल का बस लुत्फ़ उठाते हैं वो कृपा बनाये रखियेगा जय श्री राधे …भ्रमर ५
http://shuklabhramar55.jagranjunction.com/2011/10/20/%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%88-%E0%A4%AF%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%B2%E0%A5%82%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE/
Santosh Kumar के द्वारा November 3, 2011
आदरणीय भ्रमर जी ,.सादर प्रणाम
बहुत खूब ,…आपने तो अलग ही रंग जमा दिया आज ..क्या बात है जी ….बहुत बहुत बधाई ,.सरकार तो मार ही देने पर उतर आयी है ..थोडा सा सुकून मिला ..
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
प्रिय संतोष जी सरकार तो सरकार ही है ..बोलते हैं न की सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का …अभी दिल्ली बहुत दूर है झेलना तोडना जोड़ना ..शतरंज की चाल …..
हाँ संतोष जी अमिताभ जैसे कुछ मीठा हो जाए कुछ अलग रंग कभी कभी ….
आभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५
Rajkamal Sharma के द्वारा November 3, 2011
ReplyDeleteइतना तो याद है मुझे की उनसे मुलाकात हुई बाद में जाने क्या हुआ न जाने क्या बात हुई ?
मुख से पर्दा हटा क- उनकी बातो में आ के उनको सूरत दिखा के चली आई ?…..
प्रिय भ्रमर जी ….. सादर प्रणाम !
आपकी यह कविता पढ़ने के बाद पता चला की शीला के बाद अब रेशमा भी जवान हो गई है
गुल से सुलिस्तान हो गई है
यह दिन यह साल यह महीना ओ भ्रमर मियां भूलो तुम कभी ना ……
जय हो !
प्रणाम
जय श्री राधे कृष्ण
मुबार्कबाद और मंगलकामनाये
न्ये साल तक आने वाले सभी त्योहारों की बधाई
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
जय श्री राधे गुरुवर..आप के चेहरे के इतने भावों से लगा की शायद आप हंस दिए ..चेहरा आप का भी सुर्ख हो गया वो दिन याद कर कर के ….ह हां …. इतना तो याद है मुझे की उनसे मुलाकात हुई बाद में जाने क्या हुआ होगा ..वो तो आप मन में ही रख आनंद …..
गुल से सुलिस्तान हो गई है
यह दिन यह साल यह महीना ओ भ्रमर मियां भूलो तुम कभी ना …
आभार आप का अपना प्यारा प्यार बनाये रखें …आजकल आप फिर पूंछ नहीं लगाते तो हम शून्य पर पहुँच जाते ….
भ्रमर ५
roshni के द्वारा November 3, 2011
शुक्ल जी नमस्कार
बहुत ही अच्छी रचना एक अलग रंग लिए हुए …
खूब
आभार
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
हाँ रौशनी जी कभी कभी मन रंग बिरंगी दुनिया में भी चला जाता है मन है न …
रचना पसंद आई ख़ुशी हुयी आभार
भ्रमर ५
abodhbaalak के द्वारा November 3, 2011
भ्रमर जी
आपके तो हर रस में अनुथाप्न है, बहतु ही सुन्दरता से हर रस को आप ………..
सुद्नर …………
http://abodhbaalak.jagranjunction.com/
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
प्रिय अबोध जी आप का स्नेह यों ही बरसता रहे तो हिम्मत बढती रहे …
अपना स्नेह और सुझाव यों ही …
भ्रमर ५
naturecure के द्वारा November 3, 2011
आदरणीय शुक्ल जी
सादर प्रणाम
आज तो आपने श्रृंगार रस से सरावोर कर दिया |
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
प्रिय डॉ कैलाश जी अभिवादन ..कभी कभी भ्रमर उड़ते उड़ते कुछ श्रृंगार भी इस जगत में पा जाता है न दर्द के सिवा …सो …रचना आप को सराबोर कर गयी अत्यंत ख़ुशी हुयी
भ्रमर ५
वाहिद काशीवासी के द्वारा November 3, 2011
वाह भ्रमर भाई,
लोकरस में पगी आपकी ये रचना बड़ी पसंद आई।
आभार,
surendr shukl bhramar5 के द्वारा November 3, 2011
प्रिय वाहिद भाई रचना आप के मन को छू सकी लोकरस भाया सुन मन अभिभूत हुआ आभार आप का प्रोत्साहन सुझाव व् स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
आपका पोस्ट अच्छा लगा ।मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteप्रेम सिंह जी अभिवादन बहुत सुन्दर जानकारी मिली अज्ञेय जी पर आप के ब्लॉग पर बधाई सुन्दर लेखन
ReplyDeleteआभार
भ्रमर 5