छुआ जब से मुझको तूने
खिल गई हूं
कली से मै फूल बनकर
भ्रमर आते ढेर सारे
छुप रही हूं
ना सताएं शूल बनकर
गुनगुनाते छेड़ते कितने तराने यह
खुश बहुत हूं
तार की झनकार बनकर
मधु पराग खुश्बू ले उड़ते
फिर हूं रचती अन्नपूर्णा -
स्नेह घट मै कुंभ बनकर
नेह निमंत्रण दे जाते कुछ
झांक नैनों पढ़ रही हूं
संग जाती हूं कभी मुस्कान बनकर
वेदनाएं ले उदासी घूमते कुछ
धड़कनें दिल की समझती
अश्रु धारा मै सहेजूं सीप बनकर
नत हुए कुछ पाप ले मिलते शरण तो
पूत करती मै पवित्री
बह रही जग गंगा यमुना धार बनकर
स्नेह पूजा मान देते ढेर सारे
प्रकृति अपनी देवी मां हूं
बलि हुई हूं
सुख प्रदाता हवन बनकर
सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5,
12.04.2021
please be united and contribute for society ....Bhramar5