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Wednesday, April 20, 2011

गुप-चुप-गुप-चुप रजनी आई !!!


गुप-चुप-गुप-चुप
रजनी आई !!!

पहला मिलन 
अनोखा ऐसा 
कली से जब में 
फूल बनी  
नैनो का वो आमंत्रण
कितने आये और गए
होठों की मुस्कान खिली सी
दूर दूर ही चूम गए
चन्दन सा स्पर्श प्यार का
कभी छुए तो
कभी दूर से
पवन- झकोरे -से कितना कुछ
दूर दूर से भेज गए !
'खुश्बू' मेरी लेने को प्रिय !
कितने बार रोज मंडराए
छू पायें तो छू छू जाएँ
नहीं पास आने की कोशिश
सौ सौ चक्कर रोज लगाये
व्यर्थ गयी कोशिश उनकी सब
पहले मिलन का पहला भौंरा
मस्त -मदन -उन्मत्त आज वो
फूल के दिल में कैद हुआ
उस घर देखो
दिया बुझा अब
गुप-चुप-गुप-चुप
रजनी आई !!!



सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
18.४.2011



Tuesday, April 19, 2011

हे साजन जब तुम ना आते


शाम को मेरा
दिया जलाना

(photo with thanks from other source )

अंधियारे को
रोशन करना
लगता सब बेकार !!
कुछ -पल-को
अँधियारा कर  मै
नजर बंद कर
इक सपने में
वो पल तेरे
साथ सुनहरे
याद किये ही
खो जाती हूँ

अम्मा फिर
अँधियारा देखे
चिल्लाती जब
सारे सपने
टूट बिखर -
फिर मेरे साजन
पल में तुझको
साथ - तुम्हारा
झूंठलाती हूँ
हे साजन जब
तुम ना आते  ........

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५




Monday, April 18, 2011

पंखुड़ियाँ छू छू उड़ जाते


पंखुड़ियाँ छू छू
उड़ जाते


भौंरे जब तुम 
उड़ उड़ जाते 
किसी कली या 
खिले  फूल पर 
गुन-गुन कर के  
जवां बनाते
उसके कानों -
कुछ कह जाते
पंखुड़ियाँ छू छू
उड़ जाते
वहीँ पास में
छोटी थी  मै
बेसब्री से -
बनूँ बड़ी कब
सारा मंजर
देख रही थी

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१८.४.11




Friday, April 15, 2011

तेरे नैनो के सागर में



तेरे नैनो के
सागर में

नौकायन में
बीच धार में
नौका जब कुछ
बस के बाहर
बह निकली थी
किसी भंवर में
तेरे नैनो के
सागर में
पहले ही मै
डूब गई थी   
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011





नदिया जैसे उमड़ पड़ी थी




नदिया जैसे
उमड़ पड़ी थी
एक बूँद की
आस  लगाये
पपीहा सा मै
आँगन बैठी
तड़प रही थी
तभी आँख
पीछे से मींचे
तेरी -हथेली
घन सावन सी
बरस-बरस मै
नदिया जैसे
उमड़ पड़ी थी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011



साँस कहीं पर अटक गई थी



साँस कहीं पर
अटक गई थी
मंदिर में जब
माँ के संग मै
गई फुदकते
सीढ़ी चढ़ते
फिसल गयी
बांहों में तेरे
चेहरा - मेरा
लाल हुआ था
साँस कहीं पर
अटक गई थी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011




नदी तीर मै



 नदी तीर मै

 नदी तीर मै
एकाकी जब
चली नहाने
अल्हड मस्ती
गाना गाते
झूले सा मै
आड़ा -टेढ़ा
चली थिरकते 
वंशी की धुन 
उस पहले दिन 
बगिया में छुप 
झांक झांक के
कान्हा तूने
शरमाते से
गजब बजाया 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011





कली -खिली मै बादल जैसी उडी-चली



कली -खिली मै
बादल जैसी 
उडी-चली

उस दिन 
जब उसके मंडप में 
कनखी से यूं 
तुमने देखा
कली -खिली मै
बादल जैसी 
उडी-चली फिर
साया बन के
पीछे तेरे
ना मुड के
पर तूने देखा  
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011




Monday, April 11, 2011

नौवां दिन - माता सिद्धिदात्री का - आइये इनकी चरण वंदना करें

नौवां  दिन - माता सिद्धिदात्री का - आइये इनकी चरण वंदना करें 


(photo with thanks from other source)
(mantra chhavi sabhar dhanyvad ke sath anya srot se )
माँ दुर्गा का नौवां स्वरुप माता सिद्धिदात्री का है .
 आज इस नवरात्रि पावन  पर्व का अंतिम दिन है जिसे हम नवमी के नाम से जानते हैं पूजते हैं . इनके साथ आठ सिद्धियाँ जुडी हुयी हैं जिनकी प्रदाता माँ दुर्गा हैं और अपने प्रिय भक्तों पर अपना आशीष बरसा जाती हैं वे हैं अनिमा, महिमा गरिमा , लघिमा ,प्राप्ति, प्राकर्न्य ,ईशित्व, और वशित्व. जिनका वर्णन विषद है और संक्षेप में हम यह समझ लें कि इससे हमें हर चीज क़ी प्राप्ति होती है चाहे वह गरिमा , महिमा, यहाँ तक कि ईश्वर क़ी  भी प्राप्ति संभव है,माँ को हम प्रेम से भजें और और इनकी सिद्धियों का प्रसाद हम पायें तो आज के इस तप्त संसार में भी हम शांति क़ी प्राप्ति कर अपने मन को शीतल बना कर सब कुछ शीतल कर एक अनूठा योगदान दे सकते हैं - माँ शक्ति इन सभी आठों सिद्धियों क़ी प्रदाता है ऐसा कहा गया है ' देवी पुराण में कि हमारे सर्व शक्तिमान प्रभु शिव ने भी ये शक्तियां माँ  शक्ति कि आराधना पूजा करके प्राप्त की.

(photo with thanks form other source)
  माँ शक्ति की कृपा से शिव जी का आधा शारीर माँ शक्ति का हो गया था और इसी से हमारे पूज्य शिवजी का एक नाम अर्धनारीश्वर  पड़ गया और विख्यात हो गया
माँ अपने इस नौवें स्वरुप सिद्धिदात्री में सिंह पर आरूढ़ हैं और चार भुजा धारिणी हैं .माँ शक्ति सभी अष्ट सिद्धियों की प्रदाता हैं हमें यह हमेशा याद रख अपनी शक्ति का वरदान येन केंन प्रकारेण माँ की आराधना कर हासिल करना ही है . ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार १८ प्रकार की प्राप्तियां बताई गयी हैं जो हैं अनिमा, महिमा, गरिमा ,लधिमाप्राप्ति, प्राकाम्यईशित्व , वशित्वसर्वाकमल सधित्यसर्वग्यनात्व,दुर्श्रवना,पर्कायाप्रवेशन,वाकासिद्धि,कल्पवृशात्व , श्रृष्टि , सम्हार्कारान्सामार्थ्य , अमरत्व , सर्वन्ययाकत्व , भावना और  सिद्धि . अधिकतर कमल पर विराजमान प्रायः चार भुजा वाली , और  अलग अलग तरह की सिद्धियों की प्रदाता माँ अपने भक्तों पर इन दिनों और भी मेहरबान रहती हैं और हम यदि शुद्ध मन से उनका पूजन आवाहन करें तो माँ शक्ति हमारे अन्दर एक अद्भुत शक्ति दे ही जाती है , माँ सिद्धिदात्री का तीर्थ स्थान हिमालय की नंदा पर्वत श्रेणियों , पहाड़ियों में माना जाता हैं -हमारी नारी समाज इन नौ  दिनों में माँ का व्रत रख कन्याओं को भोज करा उनका आशीष पाती हैं और अपने साथ साथ हम में  भी शक्ति का संचार करती हैं -हे माँ जगद जननी दे हम सब को आशीष की इसी नवरात्री सा पावन हमारा हर दिन और हर रात्रि बना रहे

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
12.04.2011

Monday, April 4, 2011

पावन पर्व नवरात्रि - आओ हम 'बुराइयों' पर अच्छाइयों की 'विजय' करें


आज हमारा पावन पर्व नवरात्रि आरम्भ हो रहा है और हम अतीत से ये मानते रहे हैं की  माँ जगद जननी हमारे बीच अपने नौ स्वरुप लेकर  विराजमान रहेंगी ये बड़े गर्व की बात है की आज भी हमारी नारियां व् पुरुष इनकी आराधना में तत्पर रहते हैं विशेषकर हमारी महिला वर्ग इस और बहुत जागरूक है और उनकी पूजा अर्चन हेतु सुबह से ही जुट गयी हैं उनकी कलश स्थापना करना उनका पाठ करना अब दिन चर्या का मुख्य अंग बना रहेगा नौ दिन -हर काम से पहले इसकी प्राथमिकता देना माँ दुर्गा के हर रूप को दिन प्रतिदिन याद कर अपने को पवित्र बनाना और बुराइयों पर अच्छाइयों को उजागर करना बुराइयों का दमन करना इन दिनों में विशेष स्थान पाता है हमारे मंदिरों में माँ के दर्शन हेतु लम्बी लाईन अब लगी रहेंगी चाहे वो किसी भी माँ का पवित्र मंदिर हो जैसे माँ वैष्णवी हों , माँ विन्ध्याचल हों , माँ काली कलकत्ते काली घाट में विराजमान हों या हमारे घर गाँव से जुडी अधिष्ठात्री देवी कोई भी मंदिर इन दिनों जगमगाता रहेगा
आइये हम भी माँ के इन नौ स्वरूपों का कुछ ध्यान कर लें उनका नाम कम से कम अपने अन्तरंग में बसा लें ,अपनी संस्कृति को आत्मसात कर लें ,


                                            फोटो साभार अन्य स्रोत से  एक सुन्दर अवसर पर प्रयुक्त 



- शैल पुत्री - माँ शैल पुत्री -हम पहला  दिन इन्हें समर्पित करते हैं  इनकी पूजा करते हैं पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारन माँ का नाम शैल पुत्री पड़ा .

-ब्रह्मचारिणी -दूसरा दिन समर्पित है माँ ब्रह्मचारिणी को -दो हाथ, कमंडल ,माला धारण किये सती और पार्वती के रूप में तप शिव को पाने के लिए ब्रह्मा से वरदान
- चंद्रघंटा -तीसरा दिन हम समर्पित करते हैं माँ चंद्रघंटा को -माँ के मस्तक पर आधा घंटे के आकार  में विराजमान चन्द्र के कारण ये नाम पड़ा इसे हम चन्द्र-खंडा भी कहते हैं .
- कुसुमांडा -चौथा दिन माँ को समर्पित होता हैं इनके कुसुमांडा स्वरुप की हम पूजा करते हैं ये शेर पर सवार सज्जित  रहती हैं इनकी अष्ट भुजा शोभित होती है ये सम्पूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण -सौर परिवार को दर्शित करती हैं .
-स्कन्द माता देवी- पांचवां दिन माँ के स्कन्द स्वरुप की पूजा होती है ये अग्नि की देवी हैं हिमालय पुत्री शिव के साथ जुडती हैं इनके एक पुत्र का वर्णन आता है जिसे हम स्कन्द कहते हैं कार्तिक की माता स्कन्द भगवान देवताओं की सश्त्र वाहिनी सेना में मुख्य होते हैं .
- कात्यायिनी देवी - छठा दिन माँ के कात्यायिनी स्वरुप को समर्पित है -इनके तीन आँखें व् चार भुजा शोभित होती हैं शेर की सवारी .ये छठवीं स्वरुप हैं माँ दुर्गा की , इन्हें हम कात्यायिनी कहते हैं .कट का पुत्र कात्या के कारण इनका ये नाम पड़ा था.
-कालरात्रि- सातवाँ दिन माँ को समर्पित होता है काल रात्रि रूप में -ये रात्रि के सामान काली हैं -काली जटा विखेरे-लम्बे लम्बे बाल -लोग इस स्वरुप को देख भय खाते  -गले में -मानव मुंड की माला -इनके क्रोध का कोई ठिकाना नहीं शिव ने इन्हें किसी तरह मनाया था सब की अपनी बहुत गाथाएं हैं जितना भी हम वर्णन करें इनका कम है
-महागौरी देवी -आठवां दिन माँ के इस रूप को समर्पित होता है -ये आठ साल की कुवांरी कन्या के समान होती हैं शांति तेज , तीन आँखों वाली चार भुजा वाली पवित्र स्वरूप , बैल की सवारी  आठवां स्वरुप इनका माँ गौरी है
- सिद्धिरात्रि देवी -नौवां दिन माँ को समर्पित होता है सिद्धिरात्रि के रूप में ये सारी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं ये मार्कंड पूरण में वर्णित है अनिमा , महिमा, गरिमा लधिमा ,प्राप्ति , प्राकर्न्य ,ईशित्व -वशित्व  के रूप में .  ब्रह्मण रूपी सिद्ध गान्धर्व यक्ष दैत्य भगवन सब उनकी आराधना करते हैं

कुल मिलाकर हम देखते  हैं की नारी के बिभिन्न रूप को दर्शाती माँ दुर्गा हमारी नारियों को प्रेरित करती है कि उनकी शक्ति चरम है वे चाहें तो क्या नहीं कर सकती बुराइयाँ तो उनके आगे  दुम दबाकर भागती हैं वे उनका मर्दन करती हैं कितने राक्षसों को उन्होंने मारा -शांति स्वरूपिणी हैं वो -तो फिर कहीं चंडी -काली- हम सभी से आवाहन करते हैं कि माँ के इन स्वरूपों को सीखें -धारण करें -वे हमारा हर कार्य निश्चित ही सिद्ध करेंगी

जय माता दी  
जय माँ नयना देवी
जय जय माँ दुर्गे जय माँ वैष्णो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
प्रतापगढ़ .प्र.
..2011
शीघ्रता में या अज्ञानता वश हुयी अशुद्धियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ -धन्यवाद