गुप-चुप-गुप-चुप
रजनी आई !!!
पहला मिलन
अनोखा ऐसा
कली से जब में
फूल बनी
नैनो का वो आमंत्रण
कितने आये और गए
होठों की मुस्कान खिली सी
दूर दूर ही चूम गए
चन्दन सा स्पर्श प्यार का
कभी छुए तो
कभी दूर से
पवन- झकोरे -से कितना कुछ
दूर दूर से भेज गए !
'खुश्बू' मेरी लेने को प्रिय !
कितने बार रोज मंडराए
छू पायें तो छू छू जाएँ
नहीं पास आने की कोशिश
सौ सौ चक्कर रोज लगाये
व्यर्थ गयी कोशिश उनकी सब
पहले मिलन का पहला भौंरा
मस्त -मदन -उन्मत्त आज वो
फूल के दिल में कैद हुआ
उस घर देखो
दिया बुझा अब
गुप-चुप-गुप-चुप
रजनी आई !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
18.४.2011
कोमल भाव से प्रणय की रचना ... खूबसूरत
ReplyDeleteआदरणीया संगीता जी आपने गुप्त कोमल भाव की खूबसूरती को देखा हर्ष हुआ धन्यवाद
ReplyDeleteकली व भवँरे का दर्द ना जाने कोई।
ReplyDeleteहाँ संदीप जी सुन्दर अभिव्यक्ति सच में कली और भौंरे का प्यार और वलिदान -न्यारा है
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है! बधाई!
ReplyDeleteबबली जी धन्यवाद आप का इस में निहित मर्म और प्यार के रंग को आप ने समझा इस का आनंद लिया कृपया अपना स्नेह बनाये रखिये
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
khoobsurat aur bhavpuran
ReplyDeleteसंजय भास्कर जी नमस्कार
ReplyDeleteगुप चुप गुप चुप रजनी आई - भाव पूर्ण लगी और आप के मन को छू गयी गूढ़ भावों को समझने के लिए धन्यवाद हर्ष हुआ -आइये अपना समर्थन भी दें फोलो करें जो भाये तो
शुक्ल भ्रमर ५