जेठ की दुपहरी से त्रस्त लोग बेचैन हों पारा गरम हो तो मन मुटाव लडाई झगडा और पनपते हैं यहाँ अब तो जरुरत है पौंशाला लगाया जाय-शीतल जल -मधुर पेय पिलाया जाय थोडा दान पुन्य करने से मन खुश होगा -जिसका भी मन शीतल होगा वह कुछ तो आशीष देगा ही ऊपर न सही मन से ही सही -मन में ख्याल आया की थोडा विश्राम किया जाय साये में किसी वट वृक्ष के बैठ -यमुना के किनारे तो -मधुर माधुरी रंग कुछ बरस पड़े -
थोडा कुछ हट के आप सब को शीतल करने की ख्व्वाहिस में -छवि माँ राधा और श्याम की लगी है सुन्दरता के लिए कृपया अन्यथा न लें -
(फोटो साभार नेट /गूगल से लिया गया )
अभी मटकते जाती जो है – नदिया तीरे हलचल करती
थोडा कुछ हट के आप सब को शीतल करने की ख्व्वाहिस में -छवि माँ राधा और श्याम की लगी है सुन्दरता के लिए कृपया अन्यथा न लें -
(फोटो साभार नेट /गूगल से लिया गया )
अभी मटकते जाती जो है – नदिया तीरे हलचल करती
मेरी बीबी बड़ी विनोदी
हर पल मुझको छेड़े
घन -घन घंटी कभी बजाकर
ध्यान हमारा तोड़े
गागर में सागर तू भर दे
श्याम हमारे - साजन मोरेकह के माला फेरे!!
मन का कवि हूँ
मै सब समझूं
हमको- काला-कह के -कह के
चुटकी ले –है- नाचे !!
मै बोला -फिर-शुरू हो गया
पेट फुलाए- गगरी मोरी
गर्दन अरे सुराहीदार
पड़े पड़े- घर -सड़ जाएगी
मन ही मन- फिर- पछताएगी
अभी मटकते जाती जो है
नदिया तीरे-हलचल करती
घाट-घाट का- पानी पीती
कलरव करती -गाना गाती
धारा से उस नैन मिलाये
डुबकी लाये !!
मन ही मन में
खुश हो आती,
देखे भौंरे-तितली देखे
कलियों का वो फूल सा खिलना !!
मै सब समझूं
हमको- काला-कह के -कह के
चुटकी ले –है- नाचे !!
मै बोला -फिर-शुरू हो गया
पेट फुलाए- गगरी मोरी
गर्दन अरे सुराहीदार
पड़े पड़े- घर -सड़ जाएगी
मन ही मन- फिर- पछताएगी
अभी मटकते जाती जो है
नदिया तीरे-हलचल करती
घाट-घाट का- पानी पीती
कलरव करती -गाना गाती
धारा से उस नैन मिलाये
डुबकी लाये !!
मन ही मन में
खुश हो आती,
देखे भौंरे-तितली देखे
कलियों का वो फूल सा खिलना !!
उसकी पूजा हुयी ख़तम
तो उसने मुझको टोंका
या मेरा गुण गान कर रहे
मिला कहीं या न्योता ??
तो उसने मुझको टोंका
या मेरा गुण गान कर रहे
मिला कहीं या न्योता ??
वाह-वाह तेरे साथी कर
पूडी तुझे खिलाएं
मन के उनकी बातें करके
मन जो उनके छाये ,
अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई
“जूता”- हार -पिन्हायें !!
पूडी तुझे खिलाएं
मन के उनकी बातें करके
मन जो उनके छाये ,
अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई
“जूता”- हार -पिन्हायें !!
मै बोला- तूने- भटकाया
‘सुवरण’ के पीछे मै धाया
कवि जो होते ‘कायल’
नहीं बैठते चूड़ी पहने
घुंघरू वाला ‘पायल’ !!
‘सुवरण’ के पीछे मै धाया
कवि जो होते ‘कायल’
नहीं बैठते चूड़ी पहने
घुंघरू वाला ‘पायल’ !!
बिजली -तितली अलि की कलियाँ
रंग -बिरंगी कर सोलह श्रृंगार
खड़ी हैं द्वारे – देखो जाओ
तेरे जैसा नहीं-
फुलाए मुँह -बैठी हैं
और लगाये ‘काजल’ !!
रंग -बिरंगी कर सोलह श्रृंगार
खड़ी हैं द्वारे – देखो जाओ
तेरे जैसा नहीं-
फुलाए मुँह -बैठी हैं
और लगाये ‘काजल’ !!
मुँह पकड़ा उसने जो मेरा
छटका -मै -कह अपनी बात
छटका -मै -कह अपनी बात
गागर में – सागर जो भर दूं
भरी रहे फिर – गगरी ये री !
क्यों वो यमुना जाये ?
‘सर’ के जैसा ही बस पानी
क्या ‘गंगा’-यमुना हो पाए??
भरी रहे फिर – गगरी ये री !
क्यों वो यमुना जाये ?
‘सर’ के जैसा ही बस पानी
क्या ‘गंगा’-यमुना हो पाए??
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१८.५.२०११ जल पी बी ४.५० मध्याह्न
१८.५.२०११ जल पी बी ४.५० मध्याह्न
मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteडॉ वर्षा जी अभिनन्दन है आप का यहाँ और प्यारी प्रातक्रिया के लिए धन्यवाद भी -हाँ साहित्य में कभी कभी प्रियतमा लोग टांग अदने चिढाने लगती हैं न इसलिए उनकी कुछ बातें सामने आ गयी
ReplyDeleteरचना प्यारी लगी प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद आप का
dil ko choo gai ye rachna
ReplyDeleteसंजय भाष्कर जी ये विनोदी रचना गगरी को ले कर लिखी गयी पत्नियों की चुहलबाजी के प्रति थी आप को भाई सुन बहुत हर्ष हुआ धन्यवाद आइये हमारे अन्य ब्लॉग पर भी अपने सुझाव व् समर्थन के साथ
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५