मै रोज तकूं उस पार
हे प्रियतम कहां गए
छोड़ हमारा हाथ
अरे तुम सात समुंदर पार
नैन में चलते हैं चलचित्र
छोड़ याराना प्यारे मित्र
न जाने कहां गए......
एकाकी जीवन अब मेरा
सूखी जैसी रेत
भरा अथाह नीर नैनों में
बंजर जैसे खेत
वो हसीन पल सपने सारे
मौन जिऊं गिन दिन में तारे
न जाने कहां गए....
हरियाली सावन बादल सब
मुझे चिढ़ाते जाते रोज
सूरज से नित करूं प्रार्थना
नही कभी वे पाते खोज
रोज उकेरूं लहर मिटा दे
चांद चकोरा के वे किस्से
न जाने कहां गए....
तड़प उठूं मैं मीन सरीखी
यादों का जब खुले पिटारा
डाल हाथ इस सागर तीरे
जब हम फिरते ज्यूं बंजारा
खो गए प्रेम के गीत
बांसुरी पायल की धुन मीत
न जाने कहां गए.....
…...............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।
अब इस गीत पर क्या टिप्पणी करूं भ्रमर जी? ऐसे गीतों का प्रस्फुटन तो किसी विरहाग्नि में दहकते हृदय से ही हो सकता है। कुछ कहने से बेहतर है कि इसे मन-ही-मन महसूस किया जाए।
ReplyDeleteसुंदर सृजन 🙏
ReplyDeleteपिय बिन सब सूना
ReplyDeleteजितनी तारीफ की जाए उतनी कम है! भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना
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