KAVITA, LEKH, RAS-RANG,
BHRAMAR KI MADHURI
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Saturday, February 19, 2011
..........".कोयला".....
..........".कोयला".....
ऐसे न मै बना
'
कोयला
'
देख
-
देख अन्दर धधका था
कितनी
लाशें
- "
रोटी" खातिर
,
कहीं
दबे- कुछ
गए
-
दबाये
,
'
आह
'
से
उनके
आग
जली
,
भला
यही
सब
रोका
मैंने
,
हुआ
कोयला
,
नहीं
तो
दुनिया
-
आग लगी.
सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर
१९.२.११
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