Thursday, August 19, 2021

खो गए प्रेम के गीत

मै रोज तकूं उस पार
हे प्रियतम कहां गए
छोड़ हमारा हाथ
अरे तुम सात समुंदर पार
नैन में चलते हैं चलचित्र
छोड़ याराना प्यारे मित्र
न जाने कहां गए......
एकाकी जीवन अब मेरा
सूखी जैसी रेत
भरा अथाह नीर नैनों में
बंजर जैसे खेत
वो हसीन पल सपने सारे
मौन जिऊं गिन दिन में तारे
न जाने कहां गए....
हरियाली सावन बादल सब
मुझे चिढ़ाते जाते रोज
सूरज से नित करूं प्रार्थना
नही कभी वे पाते खोज
रोज उकेरूं लहर मिटा दे
चांद चकोरा के वे किस्से
न जाने कहां गए....
तड़प उठूं मैं मीन सरीखी
यादों का जब खुले पिटारा
डाल हाथ इस सागर तीरे
जब हम फिरते ज्यूं बंजारा
खो गए प्रेम के गीत
बांसुरी पायल की धुन मीत
न जाने कहां गए.....
…...............
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश , भारत।



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Sunday, April 18, 2021

साजन का मुख तो दिखला दे


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कितना ठौर ठिकाना बदले
हे चंदा तू नित आकाश
साजन का मुख तो दिखला दे
चैन से सो लूं जी इस रात
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


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Wednesday, April 14, 2021

प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली


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प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली
देखें तुझको दसियों बार
चांद देख लें अपनी ' पगली '
आ मिल लें सावन इस बार ।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


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Sunday, April 11, 2021

धड़कनें दिल की समझती


छुआ जब से मुझको तूने
खिल गई हूं
कली से मै फूल बनकर
भ्रमर आते ढेर सारे
छुप रही हूं
ना सताएं शूल बनकर
गुनगुनाते छेड़ते कितने तराने यह
खुश बहुत हूं
तार की झनकार बनकर
मधु पराग खुश्बू ले उड़ते
फिर हूं रचती अन्नपूर्णा -
स्नेह घट मै कुंभ बनकर
नेह निमंत्रण दे जाते कुछ
झांक नैनों पढ़ रही हूं
संग जाती हूं कभी मुस्कान बनकर
वेदनाएं ले उदासी घूमते कुछ
धड़कनें दिल की समझती
अश्रु धारा मै सहेजूं सीप बनकर
नत हुए कुछ पाप ले मिलते शरण तो
पूत करती मै पवित्री
बह रही जग गंगा यमुना धार बनकर
स्नेह पूजा मान देते ढेर सारे
प्रकृति अपनी देवी मां हूं
बलि हुई हूं
सुख प्रदाता हवन बनकर

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, 
12.04.2021




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Friday, April 9, 2021

आज चांद का रंग कुछ बदला


आज चांद का रंग कुछ बदला , 
प्रिय ने शायद देख लिया ।
लाल तभी है मेरा मुखड़ा,  
नैन उतर दिल नेह किया ।।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5



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Friday, March 19, 2021

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन

गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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आम्र मंजरी बौराए तन देख देख के
बौराया मेरा निश्च्छल मन
फूटा अंकुर कोंपल फूटी
टूटे तारों से झंकृत हो आया फिर से मन
कोयल कूकी बुलबुल झूली
सरसों फूली मधुवन महका मेरा मन
छुयी मुई सी नशा नैन का 
यादों वादों का झूला वो फूला मन
हंसती और लजाती छुपती बदली जैसी
सोच बसंती सिहर उठे है कोमल मन
लगता कोई जोह रही विरहन है बादल को
पथराई आंखे हैं चातक सी ले चितवन
फूट पड़े गीत कोई अधरों पे कोई छुवन
कलियों से खेल खेल पुलकित हो आज भ्रमर
मादक सी गंध है होली के रंग लिए
कान्हा को खींच रही प्यार पगी ग्वालन
पीपल है पनघट है घुंघरू की छमछम से
गांव की गोरी ने लूट लिया तन मन
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सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश भारत
19.3.2021

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Saturday, February 27, 2021

तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये

तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
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तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
छलनी दिल में भी मूरत दिखेगी तेरी
ढूंढता पूजता रात दिन मै जिसे
प्यासा चातक निगाहें तो बरसें तेरी
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मोम की तू बनी लेे के कोमल हिया
मत जला मुझको री तू पिघल जाएगी
प्रेम दर्पण में तेरे है अटका जिया
कंकरी मार सौ - सौ तू बन जाएगी
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फूल कोमल सुकोमल मेरी जान री
कांटा ही मै सही प्रहरी पहचान हूं
खुश्बू बिखराए मादक नशेमन अरी
करता गुंजन ' भ्रमर ' मै तेरी शान हूं
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चांद तू चकोरा मै इक टक लखूं
सांस कमतर हुई कल चली जाएगी
प्रेम रस दे भिगो बदली - बिजली सहूं
मेनका इन्द्र धनु कितना तरसाएगी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
उत्तर प्रदेश , भारत
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