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मेरे पाले में खेल रहा वो “दोस्त ”,
“फाइनल ” में उधर खड़ा “ताल ” ठोंकता दिखा .
नसीहतें दिए गुर -ताल , काट -सिखा
‘प्रहरी ’ बना –‘मेडल’ दिलाया उनको .
और जब हम “मातम ” मना एक ‘अपने ’ का
लौटे घर –देखा ‘सेंध ’लगा दिया उसने .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर
१८.२.११ (जल पी बी )
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