होंठ रसीले लरज रहे हैं
चाँद सा मुखड़ा सूर्यमयी
है
घूँघट कब ये खोले ?
नैन जादुई झील से गहरे
जीव जगत सब तरते
ढाई आखर प्रेम ग्रन्थ में
गहराई सब डूबे
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Bhramar5
५.१२-५.२२ पूर्वाह्न
६.४.२०१२ कुल्लू यच पी
please be united and contribute for society ....Bhramar5
3 comments:
बहुत सुन्दर रचना है
...बहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली !!
प्रिय संजय जी रचना आप के मन को छू पायी आप को भायी सुन मन गद गद हुआ
आभार
भ्रमर ५
आदरणीया संगीता जी रचना की प्रस्तुति आप को अच्छी लगी आप से समर्थन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
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