बेवफा (
खेल समझकर दिल क्यों तोड़ जाते हैं वे )
घर फूटा मन टूटा बिच्छिन्न हुए अरमान
मैंने पाया विश्वास गया
ठेस लगी टूटा अभिमान
एकाकी जीवन रोता दिल
नासूर बनी खिलती कलियाँ
जल जाएँ न सुन विरह गीत
मिट जाएँ न अभिशप्तित परियां
लूट मरोड़ मुकर क्यों जाते
ऐ सनम जो तुझसे दिल न लगाते
बाँध ले घुंघरू तज गेह नेह
सुख भर ले नित दिल टूट देख
ना धूमिल कर छवि नारी की
दिल दे न चढ़े बलि बेचारी
प्यार बना आधार बचाए घर कितने
सोने पर सोना छोड़
ले देख जरा तुझसे कितने
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
राय बरेली - प्रतापगढ़
७.९.१९९३
please be united and contribute for society ....Bhramar5
1 comment:
बहुत खूब, बेहद शानदार रचना।
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