Thursday, July 28, 2011

उनकी ये जुल्फ- घनेरे बादल हैं


उनकी ये जुल्फ- घनेरे बादल हैं

World's Longest Hair (3)
हाथी की सूंड बने
कभी तूफ़ान – कहर ढाते हैं


उनकी मुस्कान – दांत है चपला
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बज्र सी चीर – कभी
दिल को —–चली जाती है

उनकी ये चाल हिरनी सी
बड़ी पापिन है
पीछे खींचे ये -खरगोश के जैसी
शेर के मुंह में -
बड़े प्यार से ——-ले जाती है
(फोटो साभार वर्ल्ड्स लांगेस्ट हेयर और /गूगल/नेट से लिया गया )
शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी २८.७.११ – ८.20 -पूर्वाह्न

Sunday, July 24, 2011

वेवफाई - (भ्रमर गीत )



हुस्न की देवी को 
सर-आँखों से लगा के पूजा !
भक्त पे बरसेंगे कभी फूल 
दिल ने था- ये ही सोचा !
कतरे लहू के -कुछ हथेली देखे 
दुनिया की बातों को यकीनी पाया !
फूल बन जाते हैं पत्थर भी कभी 
सर तो फूटेगा ही " भ्रमर "
ओखली में जो डालोगे कभी !!

शुक्ल भ्रमर ५ 
जल पी बी १८.७.११ - ८ -मध्याह्न 
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Thursday, July 14, 2011

तीन बीबियाँ प्यारी न्यारी

तीन बीबियाँ प्यारी न्यारी
वो बीबी तो प्रेम मूर्ति है
स्नेह छलकता पीयूष घट
सात जो संग फेरे लेती है
सात जन्म प्यारा बंधन
जब भी मिलो तुम्ही पिय मेरे
एकादशी प्रदोष रहे व्रत
प्यार लुटाती संग संग खाती
सुख -दुख आधा बाँट फिरे
अर्धांगिनी है पूजी जाती
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वो सुहाग की रात न भूले
दुल्हन अब भी बनी रहे
सजना उसका आभूषण है
क्या सोना है ? भोर हुए उठ खड़ी रहे
चपला सी दिन भर फिरती वो
कभी न लगता थकी है ये
फुलवारी को सींच खिलाये
संस्कृति अपनी सब सिखलाये
बच्चे से बूढ़े सब भाई
जुटें -गृह लक्ष्मी -गृह स्वर्ग बनाये
पति की प्यारी राम दुलारी
रहे समर्पित जीवन भर
रोते राम थे वन वन भटके
बिन सीते -कहता रामायण !!
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ये बीबी तो पढ़ी लिखी है
“स्वतंत्रता” पहचाने
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रात निकलती सुबह को आती
मन भर सोना जाने
कुछ पट्टी कुछ आभूषण से
मूर्ति बनी वो सजी रहे
कृत्रिम रंग से लाली छाये
खाते -पीते- छुपे- डरे
दस-दस बॉय फ्रेंड रख कर के
पति सा उनको जाने -माने
कितने दुर्गम काज किये ये
थक हारी घर आ बेचारी
पति से अपने पाँव दबा ले
स्वतंत्रता ही पढ़ी लिखी ये
सब करार पर होता
शादी -बच्चे यदि मन चाहे
या जबरन ही सब कुछ होता
प्रेम प्यार परिभाषा दूजी
व्याख्या करती तुझे बता दे
कुछ पैसे ला कहीं कमाए
बिउटी पार्लर से बच जाए
चारा सा ये घर में डाले
हुकुम चला के भाई अपना
बंटवारा कर -बाड़- लगा दे
ये भी प्यारी बहुत उन्हें है
प्यार- एक व्यापार -जो मानें !!
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और एक बीबी है -ये भी
सामंजस्य है -कूट-कूट कर भरा हुआ
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पढ़ती लिखती काम पे जाती
पति- बच्चे सब साथ -लिए !
साथ साथ सब मिल कुछ करती
सब का हिय सम्मान लिए !
घर से बाहर कर्म अनेकों
फिरती है मुस्कान लिए !
पंख फैलाये उडती है ये
जल -थल -नभ सब नाप लिए !
सुखानुभूति -बस प्रेम से मिलती
शोध किये -सब जान लिए !
सुबह निकलती शाम को फिरती
दृश्य अनेकों देख रही- ये !
राह मलिन है कहीं कहीं तो
कौए -कुत्ते झाँक रहे !
चन्दन में विष नहीं व्यापता
अगल बगल में चाहे उसके
लिपटे जितने सांप रहें !!
( सभी फोटो गूगल /नेट से साभार लिए गए यदि किसी को कोई आपत्ति होगी तो निकाल दिया जायेगा)
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर “५

Saturday, July 9, 2011

सच तो शिव है -शिव ही करता नाग सरीखा संग-संग रहता

सच एक हंस है 
पानी दूध को अलग किये ये 
मोती खाता -मान-सरोवर डटा  हुआ है 
धवल चाँद है 
अंधियारे को दूर भगाता
घोर अमावस -अंधियारे में 
महिमा अपनी रहे बताता 
ये तो भाई पूर्ण पड़ा है !
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सच-सूरज है अडिग टिका है 
लाख कुहासा या अँधियारा 
चीर फाड़ हर बाधाओं को 
रोशन करने जग आ जाता 
प्राण फूंक हर जड़-जंगम में 
नव सृष्टि ये  रचता जाता 
सुबह सवेरे पूजा जाता !!
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सच- आत्मा है - परमात्मा है 
कभी मिटे ना लाख मिटाए 
चाहे आंधी तूफाँ  आये 
चले सुनामी सभी बहाए 
दर्द कहीं है लाश बिछी है 
भूखा कोई रोता जाये 
कहीं लूट है - घर भरते कुछ 
सच - दर्पण है सभी दिखाए !!
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सच तो शिव है -शिव ही करता 
नाग सरीखा संग-संग रहता 
जिसके पास ये आभूषण हैं 
ब्रह्म -अस्त्र ये- ताकत उसमे 
पापी उसके पास न आयें 
राहू-केतु से झूठे राक्षस 
झूठें ही बस दौड़ डराएँ 
खाने धाये !!
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सच इक आग है - शोला है ये 
धधक रहा है चमक रहा है 
उद्भव -पूजा हवन यज्ञं में 
आहुति को ये गले लगाये 
प्राणों को महकाता जाए 
श्री गणेश -पावन कर जाये 
भीषण ज्वाला - कभी नहीं जो बुझने वाला 
लंका को ये जला जला कर 
झूठी सत्ता- झूठ- जलाकर 
अहम् का पुतला दहन किये है 
सब कुछ भस्म राख कर देता 
गंगा को सब किये समर्पित 
मूड़ मुड़ाये सन्यासी सा 
बिना सहारा-डटा खड़ा है !!
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सच ये कोई नदी नहीं है 
जब चाहो तुम बाँध बना लो 
ये अथाह है- सागर- है ये 
गोता ला बस मोती ढूंढो 
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सच ये भाई ना घर तेरा 
जाति नहीं- ना धर्म है तेरा 
जब चाहो भाई से लड़ -लड़ 
ऊँची तुम दीवार बना लो 
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सच पंछी है मुक्त फिरे है 
आसमान में -वन में -सर में 
एकाकी -निर्जन-जीवन में 
सच की महिमा के गुण गाये 
कलरव करते विचरे जाए !!
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सच कोमल है फूल सरीखा 
रंग बिरंगा हमें लुभाए 
चुभते कांटे दर्द सहे पर 
हँसता और हंसाता जाये 
जीवन को महकाता  जाये 
अमर बनाये !!
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सच कठोर है -ये मूरति है 
सच्चाई का  दामन थामे 
पूजे मन से जो -सुख जाने 
यही शिला है यही हथौड़ा 
मार-मार मूरति गढ़ता है 
सुन्दर सच को आँक आँक कर 
सच्चाई सब हमें दिखाता
आँखें फिर भी देख न पायें 
या बदहवास जो सब झूंठलायें  
ये पहाड़ फिर गिर कर भाई 
चूर चूर सब कुछ कर जाए !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
७.७.२०११ ६.२६ पूर्वाह्न जल पी बी