Wednesday, March 30, 2011

दिया तो तुमने जला दिया है- अब "दीवाली" लाना


दिया तो तुमने जला दिया है- अब "दीवाली" लाना

जियो खिलाडी -एक- पटखनी देकर 
भईया जता दिया है  
दिया तो तुमने जला दिया है-
अब "दीवाली" लाना 


( photo with thanks from other source for a good cause)

खुशियों से भर -माँ का दिल
‘उछल’-‘नाच’ कर आना
लिए हाथ में -वही-"विश्व-कप"
‘सन तिरासी’ हमें यद् है
तुम भी -जोश-जगाना !!!


गले मिलो तुम -'तेज' करो -कुछ
पैना अब 'हथियार'
बड़ा 'तेज' हैदुश्मन’ तेरा
देख चुका 'संसार' !!!


 यहाँ से "लंका" तक का
सफ़र कठिन था
गजब-जमायायार’
धोनी धुन दो -सबको लेकर
सचिन करो -कुछ- गुन देकर
आस हमें है -सौ- के सौ की 


यही "सुनहरी" अवसर भाई 
सोच अभी ले -प्लान अभी कर
नींद  आये तुम्हे अंत तक 
डटे रहो मैदान !!!!! 


समय नहीं है खेलो जमकर
रोज मान ले -आज "वर्ल्ड -कप"
सहवाग लगा देना तुम -"आग"
कोहली युवी बनो गंभीर
ले मुनाफ -'रैना' जहीर


नेहरा नेह टूटे भाई
हर को लेकर 'भजनकरो
एकाग्र चित्त -कुछ-जतन करो

मेरी "वाणी" की 'पति' रखना
हमने "माँ" को वचन दिया है
लिए "विश्व-कप फोटो चलो खिंचायें"
यारा-जैसे भी हो सच कर आयें


गाँव -गली-घर-शहर-हहर कर
सब को गले मिलाएं
इसी बहाने
दुनिया जाने
"भारत" अपना
क्या है "सपना-
सच कर आना"


"वंशी" फिर से बजाना
दूध-मलाई-छाछ -दही सब
'गुड'-मीठा खाना


"छवि' -"एक"- संग ले ही आना
"माँ" को रोज दिखाना
लिए खड़े हैं "हार" यहाँ हम
आकर जल्दी गले पहन !!!!!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रम्र५
प्रतापगढ़ .प्र.
अब हम जीत के आयेंगे >>>>>

आओ 'होली' जल्दी आओ -जियरा जरा जुड़ाई-


आओ 'होली' जल्दी आओ -जियरा जरा जुड़ाई-

होली आई मेरे भाई बनठन के  
रंगीली जैसे नारि हो .....
पिया के स्वागत तत्पर बैठी 
छप्पन भोग बनाये 
गुलगुलाल हर फूल बटोरे 
छनछन  सेज संवारे
घूंघट उठा उठा के ताके 
घर आँगन क्षन-क्षन में भागे 
हवा बसंती -कोंपल-हरियाली 
तन में आग लगाये 
खिले हुए हर फूल वो सारे 
मुस्काएं -बहुत - चिढ़ाएं



कोयल भी अब कूक-कूक कर 
"कारी" -  करती जाये 
सुबह 'बंडेरी' -  'कागा' बोले  
'नथुनी' हिल-हिल जाये 
होंठों को फिर फिर चूमि -चूमि के
दिल में आग लगाये
कहे सजन चल पड़े तिहारे
जागे- गोरी 'भाग' रे
आँगन तुलसी खिल-खिल जाये
हरियाली 'पोर' - 'पोर' में छाये
रंग - बिरंगी तितली जैसी
भौंरो को ललचाये
रंग गुलाल से डर-डर मनवा
छुई -मुई हो जाये
पवन सरीखी -  पुरवाई सी  
गोरी उड़ -उड़ जाये
चूड़ी छनक -छनक 'रंगीली'-
होली याद दिलाये
सराबोर कब मनवा होगा
मोर सरीखा नाचे
पपीहा -पिया -पिया तडपाये
बदरा उडि -उडि गए "कारगिल"
"काश्मीर"-"लद्दाख"
गोरिया विरहा -"रैना" मारी
भटके कोई सागर तीरे 
कोई कन्या - कुमारी
बंडवा - नल -'सुख' -'सोख' ले  रहा
फूल रहा -कुम्हिलाई
आओ 'होली' जल्दी आओ
कान्हा को लई आओ
सावन के बदरा से बरसो
जियरा जरा जुडाई

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
३०..२०११ प्रतापगढ़ .प्र . 

Monday, March 28, 2011

गले मिलें या गला बचाएं-

 गले मिलें या गला बचाएं-   "HOLI  CONTEST”

बड़े बेटे के होने पे
गली गली गाँव शहर
बजी थी बधाई
कानो को जो फाड़ गयी
अभी एक निउज आई
पत्नी बदनाम हुयी
मर्यादा-शर्मशार हुयी
ससुराल- मायके पग फटकती
खिलौने तोडती -रोज बदलती
बचपन की आदत थी
अब भी वो कायल थी
बाप ने बेटे को थोडा जगाया
होली का दिन रंग "लाल" हो आया 
शिकवा शिकायत मलाल जो छाया 
गले मिलें या गला बचाएं
वो गुलाल या काजल लायें 
शोर था – जोर- बज रहे- 
तासे –‘ढोल-मृदंग  
रात में चढ़ा –‘भंग का रंग
किया फिर उसने माँ को बंद
कैद कर ममता को झकझोरा
अंगुली जो पकडाया अब तक
उसकी अंगुली तोडा
उसी आँगन -जहाँ वो खेला
बाप को घोडा कभी बनाया
हैवानी का -पत्ता- खेला -आज -
चढ़ा था बरछी लेकर
हाथी उसे बनाया

बाप को घोंप –‘घोंप कर मारा
"आँख" -जो देखी -उसे "निकाला"
श्मशान सी होली थी बदरंग 
चिता पर चढ़ी -यही क्या अंत  ???

वो मरते हैं बच्चों खातिर
क्या क्या भर रख जाएँ
सात पुस्त खाती जो बैठे
बने निकम्मे
खुद भूखे मर जाएँ

कहें "भ्रमर" क्या सुनी नहीं है
पूत "कपूत" तो क्यों धन संचै
पूत "सपूत" तो क्यों धन संचै 
तुम बबूल न मेरे प्यारे 
कीचड़ कमल खिलाओ 
शीतल जल -बचपन से डालो 
"आँगन" -तुलसी -लाओ !!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
२८.३.11

Wednesday, March 23, 2011

ज्वालामुखी हूँ बच के रहना -surendrashuklabhramar5-kavita-hindi poems

ज्वालामुखी
ज्वालामुखी हूँ
बच के रहना
अभी धुआँ है
फूट पडूँगा
अंगारे तन -आग भरी है
शोले हैं -चिनगारी
कब तक -"बंकर " में
छुप रहना ???
अंधियारे में गुम-सुम गुम-सुम
परत- आज कमजोर हो रही
"कोलाहल" है
भरा हुआ -  काला ये सारा
"छाती"- में !!
बना जा रहा कोयला  
अंगार दहकते -
भूल जा सारी -शक्ति अपनी 
नहीं सख्त है -अभी वक्त है 
लावा बनकर-
बह निकलेंगे
तोड़- फाड़ के पत्थर
"पानी" बन जा -एक झील
झरने सा मिल जा -
आके इस विशाल से
"शांत" -समुन्दर
हलचल तेरी -कुछ कम होगी
"तुम " से अगर -
अथाह मै देखूं
-"शीतल" -सारे
सभी मिले हों -
साथ खड़े हों -
मुस्काते हों -
कुछ गाते हों 
अपनी धुन -संगीत प्रकृति में 
"लीन" -अगर हों
ठंडा -शायद मै हो जाऊं
कुछ दिन सोया पड़ा
"धरा"- में
गति -विधियों पर
नजर -गडाए
गड़ा -रहूँगा .

शुक्लाभ्रमर५
१०.३.२०११ जल पी बी

Sunday, March 13, 2011

"हीरा"-कंचन -कांच सब इस हार में जड़ा हैं -shuklabhramar5-Kavita

"हीरा"-कंचन -कांच सब इस हार में जड़ा हैं

ये दुनिया एक
स्कूल है - मंच है
पाठशाला है -तराशने का हीरा
बड़ा-कारखाना है

जोश भरो -अभी चढो
खोज करो -"सांस" -अभी -
बाकी है  -बहुत कुछ
ढूँढना -   खोजना
तलाश करना
अँधेरे में -  आकाश गंगा में
"बरमूडा" के "ट्रैंगल" में
जिसमे कितने "हम"
डूब गए !!!
तुम क्या हो ??
एक बिंदु हो 'विलीन'
सागर में !!
अथाह जल में
डूबो -उतराओ -
छलाँग लगाओ
चाँद -सूरज को पास लाओ

हंसो हंसाओ  -"जोकर" सा
जीवन भर -  रौशनी बांटो
माँ की गोद -  आँचल जो सीखा-
"दुलार"-  "करो"
गुण -ढंग -   लाज -  हया
संस्कृति हमारी -
का -खुलकर -प्रचार करो
"मंच" पर चढ़ जाओ
"शिखर" पर चढ़ - "आओ"   -
"झंडा"   गाड़े -अपने
प्यारे 'स्कूल" में -अपने "वजूद" में
लौट आओ
जहाँ -कोई -  छोटा न
कोई बड़ा है -
"-हीरा"-कंचन-कांच सब


                       (photo with thanks from other source for a good cause)
इस हार में जड़ा है
हम बच्चे -
ये एक गुरु है
खड़िया और स्याही से
"आँक" -    जान फूंकने का
इसमें जुनू है !!!

थोडा सा 'झुक" जाओ
तरुवर बन फल लदा
नमन करो हाथ  जोड़ -
समीकरण साधने का
याद रखो -    गणित -"जोड़"-
जोड़ - तोड़ !!
दशमलव से -'शून्य" अभी -
सफ़र -   बाकी है
सूरज के पार तक
मन की उड़ान तक !!!

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर५