Wednesday, March 23, 2011

ज्वालामुखी हूँ बच के रहना -surendrashuklabhramar5-kavita-hindi poems

ज्वालामुखी
ज्वालामुखी हूँ
बच के रहना
अभी धुआँ है
फूट पडूँगा
अंगारे तन -आग भरी है
शोले हैं -चिनगारी
कब तक -"बंकर " में
छुप रहना ???
अंधियारे में गुम-सुम गुम-सुम
परत- आज कमजोर हो रही
"कोलाहल" है
भरा हुआ -  काला ये सारा
"छाती"- में !!
बना जा रहा कोयला  
अंगार दहकते -
भूल जा सारी -शक्ति अपनी 
नहीं सख्त है -अभी वक्त है 
लावा बनकर-
बह निकलेंगे
तोड़- फाड़ के पत्थर
"पानी" बन जा -एक झील
झरने सा मिल जा -
आके इस विशाल से
"शांत" -समुन्दर
हलचल तेरी -कुछ कम होगी
"तुम " से अगर -
अथाह मै देखूं
-"शीतल" -सारे
सभी मिले हों -
साथ खड़े हों -
मुस्काते हों -
कुछ गाते हों 
अपनी धुन -संगीत प्रकृति में 
"लीन" -अगर हों
ठंडा -शायद मै हो जाऊं
कुछ दिन सोया पड़ा
"धरा"- में
गति -विधियों पर
नजर -गडाए
गड़ा -रहूँगा .

शुक्लाभ्रमर५
१०.३.२०११ जल पी बी

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