Saturday, August 27, 2011

तेरी विन्दिया जो दमकी (भ्रमर-गीत)



इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
देख के छत पे जुल्फों को विखराए यों 
काली बदरी भी शरमा के रक्तिम हुयी 
कान्ति चेहरे की रोशन फिजा जो किये 
चाँद शरमा गया चांदनी गम हुयी 
इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
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तेज नैनों का देखे तो सूरज छिपा 
लाल जोड़ा पहन सांझ दुल्हन बनी 
तेरी विन्दिया जो दमकी तो तारे बुझे 
ज्यों ही पलकें गिरी सारे टिम-टिम जले 
इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
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होंठ तेरे भरे जाम -पैमाना से 
फूल शरमाये -भौंरे भी छुपते कहीं 
तेरी मुस्कान -जलवे पे लाखों मरे 
कौंधी जैसे गगन -कोई बिजली गिरी 
इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
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खुबसूरत हसीना -मेनका -कामिनी 
रेंगते साँप -चन्दन-असर ना कहीं 
तू है अमृत -शहद- मधुर -है रागिनी 
"भ्रमर" उलझा पड़ा -तेरे दिल में कहीं 
इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
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तू है मधुशाला मै हूँ पियक्कड़ बड़ा 
झूमता देखिये -गली-नुक्कड़ खड़ा 
रूपसी -षोडशी -नाचती मोरनी 
दीप तू है -पतंगा मै ---कैसे बचूं ??
इतनी सुन्दर है मेरी   ऐ   महबूब तू 
देख परियां भी शरमा गयीं 
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
जल पी बी ५.८.२०११ ६.३० पूर्वाह्न 

Sunday, August 21, 2011

ढोल मजीरा तो हर दिन बाजे आज घर घर बजे सब की थाली श्याम जू पैदा भये


आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं आइये आवाहन करें की कृष्ण हम सब में आयें और अनाचार मिटायें हमारे सभी आन्दोलन सफल हों और दुराचारी भ्रष्टाचारी मुह की खाएं-इस कलयुग में द्वापर की बातें याद आ जाती हैं -आज तो कितनी द्रौपदी बेचारी कोई कान्हा नहीं पाती हैं ..ग्वाल बाल सब .सखियों सहेलियों का पवित्र प्यार अब कहाँ …जो भी हो आज अपने अंगना में गोपाला को आइये लायें ….गोदी में खिलाएं ….स्वागत करें …काले काले बदरा ..भादों का महीना … -भ्रमर ५
———–भ्रमर गीत———
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श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
ढोल मजीरा तो हर दिन बाजे
आज घर घर बजे सब की थाली
श्याम जू पैदा भये
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घुंघटा वाली नाचे चूड़ी कंगन बजाई के
बच्चे बूढ़े भी नाचें बजा ताली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
बदरा बजाये पशु पक्षी भी नाचें
पेड़ पौधों में छाई हरियाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
कृष्ण पाख कुछ चाँद छिपावे
आज घर घर मने है दिवाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
भादों में नदी नाले सागर बने
कान्हा चरण छुए यमुना भयीं खाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
पूत जने माई बप्पा तो झूमें
आज देशवा ख़ुशी भागशाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
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कृपया मेरी अन्य तरह की रचनाएँ मेरे अन्य ब्लॉग पर पढ़ें जो इस पृष्ठ पर दायीं तरफ रहती हैं ….
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२२.०८.२०११
प्रतापगढ़ उ.प्र. ६.३० पूर्वाह्न

Friday, August 19, 2011

निज मन तू पहचाने बन्दे पूत आत्मा तेरी


निज मन तू पहचाने बन्दे 
पूत आत्मा तेरी 
निश्छल गंगा से बहने दे 
कभी न होए मैली !!
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सोना चांदी लाद -लाद तन 
मन पर बोझ बढ़ाये 
ममता प्यार सत्य अनुशासन 
नियम -नीति भूला जाए !!
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बही दिखावा गठरी सारी 
अहम बड़प्पन सारे 
छीन झपट घर महल सजाना 
व्यर्थ -काम ना आते !!
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दान मान मर्यादा -धीरज 
संयम दया प्रेम रख -सारे 
भूखे को रोटी दे देना 
अंधियारे में दीप जला दे 
ख़ुशी किसी चेहरे दे देना 
मीठे बोल -घोल रस देना !!
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सत्कर्मों या दुष्कर्मों का 
फल है निश्चित-लेना 
गाँठ बाँध मन सोच रे भाई 
क्या बबूल से -आम है लेना !!
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अंत में नंगे कर नहलाएं 
गहने -कपडे -सभी उतारें 
गठरी-गुण-धर्मों की बांधें 
लूट कोई ना पाए !!
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यही चले है संग तुम्हारे 
धर्मराज "स्वागत" आते 
यही आत्मा आलोकित हो 
"अमर" -धरा को स्वर्ग करे !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५ 
२३.०७.२०११ ७.५१ पूर्वाह्न 

Sunday, August 14, 2011

लिए तिरंगा मै निकला हूँ



हीरा हैं हम सोना हैं हम 
चांदी सा हम चमकेंगे !
सोने की चिड़िया, 
दूध की नदिया ,
"हरित-क्रांति" दिखलायेंगे !!
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गाओ बच्चों मेरे संग में !
मिल जाओ सब मेरे दल में !!
घर-घर से आवाज उठी है 
बन्दे मातरम -बन्दे मातरम !
लिए तिरंगा मै निकला हूँ 

कदम ताल कर -छम्मक छम !
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गाँव गली हर शहर नगर में 
रंग बिरंगा उत्सव है !
गीत शहीदों की गाते सब 
शीश झुका नतमस्तक हैं !!
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न्याय अहिंसाभाईचारा ,
प्रेम सभी दिल में भर दें !
दुश्मन कहीं जो आँख दिखाए 
धूल-धूसरित पल में कर दें !!
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सिंह से गरजें चोटी  चढ़ के 
कर अपनी चौड़ी छाती !
जल थल नभ की अपनी सेना 
दुनिया में गरजे जाती !!
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राखी बाँधे  जोश दिए हैं 
सब वीर अमर अपने भाई !
जन-गण मन अधिनायक जय हे 
गीत -सांस-अपनी थाती !!
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अग्नि- पृथ्वी- ब्रह्म-अस्त्र सब 
अब सब अपनी मुट्ठी में !
सोने सा तप के हम निकले 
मातृ-भूमि की भट्ठी से !!
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रहे न कोई क्षेत्र अधूरा !
कर पायें हम जो ना पूरा !!

माँ-भारती है गुरु हमारी !
बलि जाए हम प्राण पियारी !!
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अनुशासन में पल के बढ़ के 
नम्र शिष्ट हम बन जाएँ !
मातृ-भूमि की रक्षा में डट 
न्योछावर हम हो जाएँ !!
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हमारे सभी मित्र गन और सम्माननीय नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ-कामनाएं -जय भारत जय हिंद .

ये कविता हमारे ब्लॉग बाल झरोखा सत्यम की दुनिया से उद्धृत 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
प्रतापगढ़ उ.प्र. ३.१२ पूर्वाह्न 
१५.०८.२०११ 

Saturday, August 13, 2011

मोरा सैयां बड़ा नादान हो



मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई आधी रतिया बिताई के
बारह मास परदेश बितावे 
सावन  - भादों पहचान हो 
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

घरहूँ आये घूमी खेलि बितावे
बाल मन -२ कईसन  होए जवान हो
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

जाम भरे नैनन मै दिन भर निहारूं 
छैला आवे तो -२ रस छलकाई हो  
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

रात रानी सेजिया चमेली सजाऊँ
महकि  गमकि -२ कुम्हिलाई हो
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

पाऊडर क्रीम सब सेंट लगाऊं
हँसे बतियों में -२ बस उलझाई के
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

सोलह श्रृंगार सखी भौंरे को छेड़ूँ
पास आवे तो -२ अंचरा लुकाई हो
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

लौंगा इलायची मधुर बीरा लगाऊं
चाबे ना -२ निंदिया भुलाई हो
आधी रतिया बिताई के 
मोरा सैयां बड़ा नादान हो
आवई सारी रतिया बिताई के !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
14.08.2011
जल पी बी  ८.३५ पूर्वाह्न  

तेरी रक्षा का प्रण बहना रग-रग में राखी दौडाई


बहना मेरी दूर पड़ा मै
दिल के तू है पास
अभी बोल देगी तू “भैया”
सदा लगी है आस
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मुन्नी -गुडिया प्यारी मेरी
तू है मेरा खिलौना
मै मुन्ना-पप्पू-बबलू हूँ
बिन तेरे मेरा क्या होना !
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तू ही मेरी सखी सहेली
कितना खेल खिलाया
कभी -कभी मेरी नाक पकड़ के
तूने बहुत चिढाया !
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थाली में तू अपना हिस्सा
चोरी से था डाल खिलाया
जान से प्यारी मेरी बहना
भैया का गहना है बहना !!
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जब एकाकी मै होता हूँ
सजी थाल तेरी वो दिखती
Rakhi-festival-images
चन्दन जभी लगाती थी तू
पूजा- मेरी आरती- करती !
रक्षा -बंधन और मिठाई
दस-दस पकवान पकाती थी
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बाँध दिया बंधन से तूने
ये अटूट रक्षा जो करता
मेरी बहना सदा निडर हो
ख़ुशी रहे दिल हर पल कहता
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जहाँ रहे तू जिस बगिया में
हरी-भरी हो फूल खिले हों
ऐसे ही ये प्यारा बंधन
सब मन में हो -गले लगे हों
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तू गंगा गोदावरी सीता
तू पवित्र मेरी पावन गीता
तेरी राखी आई पाया
चूम इसे मै गले लगाया
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कितने दृश्य उभर आये रे
आँख बंद कर हूँ मै बैठा
जैसे तू है बांधे राखी
मन -सपने-उड़ता मै “पाखी”
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तेरी रक्षा का प्रण बहना
रग-रग में राखी दौडाई
और नहीं लिख पाऊँ बहना
आँख छलक मेरी भर आई
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१३.०८.११ ८.४५ पूर्वाह्न
जल पी बी

Thursday, August 11, 2011

प्यार होता है मन की निर्मल भावना से ,

भ्रमर की माधुरी का सजना को मित्रता दिवस पर शुभ कामनाएं -

सिर्फ गुलाब इश्क का पैगाम नहीं होता ,
चाँद-चांदनी का प्यार सरे आम नहीं होता !!




प्यार होता है मन की निर्मल भावना से , 
वरना यूं ही राधे -कृष्ण का नाम नहीं होता !!

भ्रमर की माधुरी 
८.०८.२०११ PBH