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Tuesday, May 13, 2014

होंठ रसीले मधु टपके ज्यों



चन्दन सी खुशबू है तेरी
तभी साँप दिल लोट रहे
जुल्फ का स्याह अँधेरा देखे
निशा-निशाचर आते हैं
नैन कंटीले मदिरा प्याला
मदमस्त जाम भर जाते हैं
गाल गुलाबी सूर्य किरण से
व्याकुल जीवन कुछ पाते हैं


होंठ रसीले मधु टपके ज्यों
पथ-पथिक भरे रस जाते हैं
फूल सा कोमल चेहरा दमके
तभी 'भ्रमर' मंडराते हैं
तू गुलाब अप्सरा सी झूमे
कांटे - दामन छू जाते हैं
कंचन कामिनि मेनका बनी तू
“मोह” पाश पंछी सारे फंस जाते हैं
डाले दाना क्यों भ्रमित किये हे !
दिल लुटा चैन खो बदहवाश वे जाते हैं
प्यारा अपना घर - प्रेम भी भूले
‘मायावी’ दुनिया चक्कर यहीं लगाते हैं


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर '
कुल्लू हिमाचल भारत


03-मई -२०१४ , 7-30-8.00 पूर्वाह्न






आइये एक बनें नेक बनें  एकसूत्र मे बँधें और देश हित मे योगदान देते चलें
माधुरी 

Monday, February 24, 2014

जो मुस्का दो खिल जाये मन


जो मुस्का दो खिल जाये मन
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खिला खिला सा चेहरा  तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब
बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०.०२.२०१४
४.३०-५ मध्याह्न
करतारपुर जालंधर पंजाब



please be united and contribute for society ....Bhramar5