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Thursday, July 14, 2011

तीन बीबियाँ प्यारी न्यारी

तीन बीबियाँ प्यारी न्यारी
वो बीबी तो प्रेम मूर्ति है
स्नेह छलकता पीयूष घट
सात जो संग फेरे लेती है
सात जन्म प्यारा बंधन
जब भी मिलो तुम्ही पिय मेरे
एकादशी प्रदोष रहे व्रत
प्यार लुटाती संग संग खाती
सुख -दुख आधा बाँट फिरे
अर्धांगिनी है पूजी जाती
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वो सुहाग की रात न भूले
दुल्हन अब भी बनी रहे
सजना उसका आभूषण है
क्या सोना है ? भोर हुए उठ खड़ी रहे
चपला सी दिन भर फिरती वो
कभी न लगता थकी है ये
फुलवारी को सींच खिलाये
संस्कृति अपनी सब सिखलाये
बच्चे से बूढ़े सब भाई
जुटें -गृह लक्ष्मी -गृह स्वर्ग बनाये
पति की प्यारी राम दुलारी
रहे समर्पित जीवन भर
रोते राम थे वन वन भटके
बिन सीते -कहता रामायण !!
————————————
ये बीबी तो पढ़ी लिखी है
“स्वतंत्रता” पहचाने
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रात निकलती सुबह को आती
मन भर सोना जाने
कुछ पट्टी कुछ आभूषण से
मूर्ति बनी वो सजी रहे
कृत्रिम रंग से लाली छाये
खाते -पीते- छुपे- डरे
दस-दस बॉय फ्रेंड रख कर के
पति सा उनको जाने -माने
कितने दुर्गम काज किये ये
थक हारी घर आ बेचारी
पति से अपने पाँव दबा ले
स्वतंत्रता ही पढ़ी लिखी ये
सब करार पर होता
शादी -बच्चे यदि मन चाहे
या जबरन ही सब कुछ होता
प्रेम प्यार परिभाषा दूजी
व्याख्या करती तुझे बता दे
कुछ पैसे ला कहीं कमाए
बिउटी पार्लर से बच जाए
चारा सा ये घर में डाले
हुकुम चला के भाई अपना
बंटवारा कर -बाड़- लगा दे
ये भी प्यारी बहुत उन्हें है
प्यार- एक व्यापार -जो मानें !!
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और एक बीबी है -ये भी
सामंजस्य है -कूट-कूट कर भरा हुआ
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पढ़ती लिखती काम पे जाती
पति- बच्चे सब साथ -लिए !
साथ साथ सब मिल कुछ करती
सब का हिय सम्मान लिए !
घर से बाहर कर्म अनेकों
फिरती है मुस्कान लिए !
पंख फैलाये उडती है ये
जल -थल -नभ सब नाप लिए !
सुखानुभूति -बस प्रेम से मिलती
शोध किये -सब जान लिए !
सुबह निकलती शाम को फिरती
दृश्य अनेकों देख रही- ये !
राह मलिन है कहीं कहीं तो
कौए -कुत्ते झाँक रहे !
चन्दन में विष नहीं व्यापता
अगल बगल में चाहे उसके
लिपटे जितने सांप रहें !!
( सभी फोटो गूगल /नेट से साभार लिए गए यदि किसी को कोई आपत्ति होगी तो निकाल दिया जायेगा)
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर “५