दुस्साहस -"घंटी" बजा देने का 
खुदाई जारी थी 
हम खुश थे -कुछ मिलेगा 
कोई सभ्यता फिर 
"सिन्धु -घाटी" सी  -
पुजारी की छत्र-छाया में 
मिले - सोने के बिस्कुट -
चाँदी-हीरे -गहने- 
भीड़-मीडिया -विडियो 
आज मिली आजादी 
सबको -देखने की 
सुनने की !
फिर समझ आई -क्यों-
हम तथाकथित -"छोटे -लोगों" को 
घुसने -ठहरने नहीं दिया जाता 
'पीठ ठोंक' -एक पल में -
'चल' कह दिया जाता 
मठ-मन्दिर -आश्रम के 
प्रान्गड़   में - तहखाने में 
वी -आई-पी-लोन्ज में 
क्योंकि हम छोटे लोगों के 
होती हैं " जादुई आँखें"
शिव सा 'त्रिनेत्र' 
छोटी सी जीभ -  बोलने का साहस 
दुस्साहस ...
घंटी बजा देने का !!!
शोर मचा 
"जागते रहो"  
चिल्ला-चिल्ला 
सबको -जगा देने का .
शुक्लाभ्रमर५
२.३.११ जल पी.बी.
 


 
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