Sunday, September 30, 2012

उँगलियों के इशारे नचाने लगी


उँगलियों के इशारे नचाने  लगी
उम्र की सीढ़ियों कुछ कदम ही बढे
अंग -प्रत्यंग शीशे झलकने लगे
वो खुमारी चढ़ी  मद भरे जाम से
नैन प्याले तो छल-छल छलकने लगे
लालिमा जो चढ़ी गाल टेसू हुए
भाव भौंहों से पल-पल थिरकने  लगे
जुल्फ नागिन से फुंफकारती सी दिखे
होश-मदहोशी में थे बदलने लगे
नींद आँखों से गायब रही रात भर
करवटें रात भर सब बदलते रहे
तिरछी नैनों की जालिम अदा ऐ सनम
बन सपन अब गगन में उड़ाती फिरे
पर कटे उस पखेरू से हैं कुछ पड़े
गोद में आ गिरें सब तडफने  लगे
सुर्ख होंठों ने तेरे गजब ढा दिया
प्यास जन्मों की अधरों पे आने लगी
दिल धडकने लगा मन मचलने  लगा
रोम पुलकित तो शोले दहकने लगे
पाँव इत-उत चले खुद बहकने लगे
कोई चुम्बक लगे खींचता हर कदम
पास तेरे 'भ्रमर' मंडराने लगे
देख सोलह कलाएं गदराया जिसम
नैन दर्पण सभी खुद लजाने लगे
मंद मुस्कान तेरी कहर ढा रही
कभी अमृत कभी विष परसने लगी
भाव की भंगिमा में घिरी मोहिनी
मोह-माया के जंजाल फंसने लगी
तडफडाती  रही फडफडाती  रही
दर्द के जाल में वो फंसी इस कदर
वेदना अरु विरह के मंझधार में
नाव बोझिल भंवर डगमगाने लगी
नीर ही नीर चहुँ ओर डूबती वो कभी
आस मन में रखे - उतराने लगी
जितना खोयी थी- पायी- भरी सांस फिर
उड़ के तितली सी- सब को सताने लगी
मोरनी सी थिरकती बढ़ी जा रही
उँगलियों के इशारे नचाने लगी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
मुरादाबाद-सहारनपुर उ प्र.
१०-१०.४५ मध्याह्न
१०.०३.१२



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Sunday, September 23, 2012

कल चला था पुनः राह में मै उसी दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …


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32598-beautiful-bride-akshara.jpg
( फोटो साभार गूगल / नेट से लिया गया )
कल चला था पुनः राह में  मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
रौशनी छन के आई गगन से कहीं
दिल के अंधियारे दीपक जला के गयी
राह टेढ़ी चढ़ाई मै चढ़ता गया
दो दिलों की सी धड़कन मै सुनता रहा
कोई सपनों में रंगों को भरता रहा
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली
मेंहदी गोरी कलाई पे रचता रहा
छम -छमा-छम सुने पायलों की खनक
माथ बिंदिया के नग में था उलझा हुआ
इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं
उन सितारों की महफ़िल सजाती रही
लटपटाता रहा आह भरता रहा
फिर भी बढ़ता रहा रंग भरता रहा
तूने लव बनाये थे कुछ तरु वहीं
चीड-देवदार खामोश हारे सभी
तेरी जिद आगे हारे न लौटा सके
ना तुझे-ना वो खुशियाँ- न रंगीनियाँ
पलकों के शामियाने बस सजे रह गए
ना वो ‘दूल्हा’ सजा , ना वो ‘दुल्हन’ सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे ‘हार’ से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
तेरे नजदीक पल-पल मै आता रहा
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा – मै जलाता रहा !
कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’ ५
४.४५-५.४० मध्याह्न
१९.५.१२ कुल्लू यच पी




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