तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
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तिरछे नैनों से संधान मत कर प्रिये
छलनी दिल में भी मूरत दिखेगी तेरी
ढूंढता पूजता रात दिन मै जिसे
प्यासा चातक निगाहें तो बरसें तेरी
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मोम की तू बनी लेे के कोमल हिया
मत जला मुझको री तू पिघल जाएगी
प्रेम दर्पण में तेरे है अटका जिया
कंकरी मार सौ - सौ तू बन जाएगी
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फूल कोमल सुकोमल मेरी जान री
कांटा ही मै सही प्रहरी पहचान हूं
खुश्बू बिखराए मादक नशेमन अरी
करता गुंजन ' भ्रमर ' मै तेरी शान हूं
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चांद तू चकोरा मै इक टक लखूं
सांस कमतर हुई कल चली जाएगी
प्रेम रस दे भिगो बदली - बिजली सहूं
मेनका इन्द्र धनु कितना तरसाएगी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
उत्तर प्रदेश , भारत