Sunday, July 24, 2011

वेवफाई - (भ्रमर गीत )



हुस्न की देवी को 
सर-आँखों से लगा के पूजा !
भक्त पे बरसेंगे कभी फूल 
दिल ने था- ये ही सोचा !
कतरे लहू के -कुछ हथेली देखे 
दुनिया की बातों को यकीनी पाया !
फूल बन जाते हैं पत्थर भी कभी 
सर तो फूटेगा ही " भ्रमर "
ओखली में जो डालोगे कभी !!

शुक्ल भ्रमर ५ 
जल पी बी १८.७.११ - ८ -मध्याह्न 
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4 comments:

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय संजय भाष्कर जी जैसे आप की कुछ रचनाओं की पंक्तियाँ बार बार आप के ब्लॉग पर बुला ले जाती हैं मानना पड़ता है आप की सोच और इन भावों तक पहुँचने की क्षमता को ---
वैसे ही ये भी आप सब के प्यार से -ये उपर्युक्त रचना / ये पंक्तियाँ जो आप को यहाँ भायीं बरस पड़ती हैं ...
आभार आप का प्रोत्साहन हेतु -कृपया हमारे अन्य ब्लॉग भी देखें
शुक्ल भ्रमर ५
रस रंग भ्रमर का ..आदि

Urmi said...

बहुत खूब लिखा है आपने! ज़बरदस्त कविता! आपकी लेखनी को सलाम!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय बबली जी हार्दिक अभिवादन आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो लेखनी को सलाम की और सराही अपना सुझाव समर्थन बनाये रखना -
आप के ब्लॉग बहुत सुन्दर है इंग्लिश के ब्लॉग भी खुबसूरत ..
शुक्ल भ्रमर ५