Friday, September 23, 2011

अश्क नैन ले -मोती रही बचाती

आइये थोडा हट के कुछ देखें २६ और ३२ रुपये में दिन भर खाना खा लें बच्चों को पढ़ा लें संसार चला लें प्यार कर लें हनीमून भी मना लें ………कैसा है ये प्यार ……………….
क्या आयोग मंत्री तंत्री नेता के दिल और दिमाग नहीं होता ………….
ऊपर से कुदरत की कहर गिरा हुआ घर बना लें रोज जगह बदलते हुए भागते फिरें जो बच जाएँ ….
अश्क नैन ले -मोती रही बचाती
इठलाती -बलखाती
हरषाती-सरसाती
प्रेम लुटाती
कंटक -फूलों पे चलती
पथरीले राहों पे चल के
दौड़ी आती
तेरी ओर
“सागर” मेरे-तेरी खातिर
क्या -क्या ना मै कर जाती
नींद गंवाती -चैन लुटाती
घर आंगन से रिश्ता तोड़े
“अश्क” नैन ले
“मोती” तेरी रही बचाती
दिल क्या तेरे “ज्वार” नहीं है
प्रियतम की पहचान नहीं है
चाँद को कैसे भुला सके तू
है उफान तेरे अन्तर भी
शांत ह्रदय-क्यों पड़े वहीं हो ?
तोड़ रीति सब
बढ़ आओ
कुछ पग -तुम भी तो
बाँहे फैलाये
भर आगोश
एक हो जाओ
समय हाथ से
निकला जाए !!
———————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
८.३० पूर्वाह्न यच पी २२.०९.२०११

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

मन को छु लेने वाले इस बेहतरीन पोस्ट के लिए सदर आभार |

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्दर भाव हैं, आनंद ही आ गया....आभार