Saturday, November 15, 2014

बेवफा

बेवफा ( खेल समझकर दिल क्यों  तोड़ जाते हैं वे ) 
घर फूटा मन टूटा बिच्छिन्न हुए अरमान 
मैंने पाया विश्वास गया
ठेस लगी टूटा अभिमान 
एकाकी जीवन रोता दिल
नासूर बनी खिलती कलियाँ 
जल जाएँ न सुन विरह गीत 
मिट जाएँ न अभिशप्तित परियां 
लूट मरोड़ मुकर क्यों जाते
ऐ सनम जो तुझसे दिल न लगाते
बाँध ले घुंघरू तज गेह नेह
सुख भर ले नित दिल टूट देख
ना धूमिल कर छवि नारी की
दिल दे न चढ़े बलि बेचारी
प्यार बना आधार बचाए घर कितने
सोने पर सोना छोड़
ले देख जरा तुझसे कितने

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
राय बरेली - प्रतापगढ़

७.९.१९९३ 



please be united and contribute for society ....Bhramar5

1 comment:

कहकशां खान said...

बहुत खूब, बेहद शानदार रचना।