हंसमुख नैन तिहारे प्रियतम  
क्या क्या रंग दिखाते हैं 
नाच मयूरी सावन रिमझिम 
घायल दिल कर जाते हैं 
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हर इक आहट नजर थी रहती 
प्यासे नैन थे पर फैलाये 
पलक पांवड़े स्वागत खातिर 
कब निकले तू नैन समाये 
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कभी ओढ़नी होंठ दबाये पग ठुमकाये 
कटि तक तू बल खाए 
तिरछे नैन से बाण चलाये 
अरी कभी तो बिना मुड़े चली जाए 
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कभी देखने चाँद चांदनी 
दिवस निशा छत पर तू आ जाये 
कभी कैद बुलबुल सी पिजड़े 
हिलता -पर्दा प्रिय री बहुत सताए 
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कभी फूल पौधे कपड़ों  में
छवि तेरी बस जाये 
रहूँ ताकता पहर-पहर भर 
हो अवाक् मै, होठों गीत विरह धुन छाये 
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भीड़  से छिपता नीरव निर्जन
काश कभी प्यारी मूरति वो आ ही जाए 
गहरी सांस मै सपने उड़ता 
तुझसे मन खूब बातें करता -
धरती पर गिर जाए 
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चंचल शोख हसीना हे री !
तू गुलाब तू कमल कली रे 
जनम -जनम का नाता तुझसे 
'भ्रमर ' के तो  तू प्राण
बसी रे 
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आओ करें सुवासित जग को 
'खुशबू' सुरभित ये जग फैलाएं 
प्रेम-प्यार उपजे हर बगिया 
सुख हो-खुशियाँ -
दिल अपने दिल में बस जाएँ 
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कभी कसे गोदी बच्चों को 
कन्धे माँ छुप कभी निहारे 
बड़े रूप देखूं नित प्रियतम 
तीर -मार घायल कर जाए 
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बेकरार कर सखी री ना सताइये 
पढ़ ले दिल की ये किताब लौट आइये 
मदहोशी पगली बहकी यूं ना जाइए 
दिल के आशियाने सुकूँ लौट आइये 
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नैन झुकाये पास तो आती 
चितए जब- हो जाती दूर 
मै भी -तू - मुस्काती फिरती 
पल-पल इतना चंदा मामा फिर भी दूर 
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमाचल 
७ .०० पूर्वाह्न 
७.५.२०१५
please be united and contribute for society ....Bhramar5
 

 
1 comment:
सुंदर, अतिसुंदर रचना।
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