कौन हो तुम प्रेयसी ?
कौन  हो  तुम  प्रेयसी ?कल्पना, ख़ुशी या गमसोचता हूँ मुस्काता हूँ,हँसता हूँ, गाता हूँ ,गुनगुनाता हूँमन के 'पर' लग जाते हैंघुंघराली  जुल्फेंचाँद सा चेहराकंटीले कजरारे नैनझील सी आँखों के प्रहरी-देवदार, सुगन्धित काया  मेनका-कामिनी,गज गामिनीमयूरी सावन की घटासुनहरी छटाइंद्रधनुष , कंचन कायाचित चोर ?अप्सरा , बदली, बिजलीगर्जना, वर्जनाया कुछ और ?निशा का गहन अन्धकारया स्वर्णिम भोर ?कमल के पत्तों पर ओसआंसू, ख्वाबों की परी सी ..छूने जाऊं तोसब बिखर  जाता हैमृग तृष्णा सा !वेदना विरह भीगी पलकेंचातक की चन्दाज्वार- भाटास्वाति नक्षत्रमुंह खोले सीपी सामोती की आसतन्हाई पासउलझ जाता हूँ -भंवर मेंभवसागर मेंपतवार पाने को !जिंदगी की प्यासमजबूर किये रहती हैजीने को ...पीने को ..हलाहलमृग -मरीचिका साभरमाया फिरता हूँदिन में तारे नजर आते हैंबदहवाश अधखुली आँखेंबंद जुबान -निढाल -सो जाता हूँ -खो जाता हूँदादी की परी कथाओं मेंगुल-गुलशन-बहार मेंखिलती कलियाँ लहराते फूलदिल मोह लेते हैंउस 'फूल' मेंमेरा मन रम जाता हैछूने  बढ़ता हूँऔर सपना टूट जाता है--------------------------------सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५७-७.२० मध्याह्न२३.०२.२०१४करतारपुर , जालंधर , पंजाब
please be united and contribute for society ....Bhramar5
 

 
No comments:
Post a Comment