Thursday, February 10, 2011

दर्द - भ्रमर का

दर्द - भ्रमर का
करी कल्पना बेटी की-
चाँद सी सूरज को छू लेगी,
ख़ुशी बड़े थे बाबा माई,
अब रोते -अंखियों में मोती,
बेटी 'धरती' छू न पायी.
दूल्हा- राजा- घोडा बाजा,
महल दुमहले शोर तमाशा,
खुश कितने हैं अम्मा बाबू
फिर 'दहेज़' दानव का कीड़ा
नीबू जैसे उन्हें निचोड़ा,
डर इतना है ह्रदय समाये
रोंती   कल - "ना बेटी आये"
डोली पकडे लटके काका
माँ रोंती -दुनिया -शरमाई
डोली उसकी रुक ना पाई.

सुरेन्द्रशुक्ल भ्रमर
७.४४ जालंधर पंजाब




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