Tuesday, April 19, 2011

हे साजन जब तुम ना आते


शाम को मेरा
दिया जलाना

(photo with thanks from other source )

अंधियारे को
रोशन करना
लगता सब बेकार !!
कुछ -पल-को
अँधियारा कर  मै
नजर बंद कर
इक सपने में
वो पल तेरे
साथ सुनहरे
याद किये ही
खो जाती हूँ

अम्मा फिर
अँधियारा देखे
चिल्लाती जब
सारे सपने
टूट बिखर -
फिर मेरे साजन
पल में तुझको
साथ - तुम्हारा
झूंठलाती हूँ
हे साजन जब
तुम ना आते  ........

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५




2 comments:

संजय भास्‍कर said...

lajwaab rachna

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

संजय भास्कर जी -हे सजन जब तुम ना आते रचना आप को लाजबाब लगी सुन हर्ष हुआ -आभार आप का